हांगझोऊ/नई दिल्ली
भारतीय शूटर्स ने एशियन गेम्स के इतिहास में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। 72 साल के गेम्स इतिहास में पहली बार भारतीय निशानेबाज 3 से ज्यादा गोल्ड जीतने में सफल रहे। हांगझोऊ में शनिवार तक भारतीय निशानेबाज देश को 6 गोल्ड, 8 सिल्वर और 5 ब्रॉन्ज समेत कुल 19 मेडल दिला चुके हैं। अभिनव बिंद्रा
शूटर्स ने 2006 के दोहा एशियन गेम्स का रिकॉर्ड तोड़ा। तब भारत ने 3 गोल्ड, 5 सिल्वर और 6 ब्रॉन्ज सहित शूटिंग के 14 मेडल जीते थे। एक दौर ऐसा भी आया, जब भारतीय निशानेबाजों को बैंकॉक एशियन गेम्स-1978 से बिना मेडल के लौटना पड़ा था।
1: हांगझोऊ में टीम इवेंट शामिल हुए
भारत को हांगझोऊ गेम्स में टीम इवेंट के शामिल होने का फायदा हुआ। इन गेम्स में दो टीम इवेंट शामिल किए गए हैं। भारत को मिले 6 गोल्ड में से 4 टीम इवेंट से ही आए हैं। नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के एक अधिकारी ने बताया- ओलिंपिक से मिक्स्ड इवेंट हटने के बाद एशियाड से भी टीम इवेंट को हटा दिया गया था। 2014 और 2018 के गेम्स में टीम इवेंट नहीं था। इस बार टीम इवेंट गेम्स में शामिल किए गए हैं और इसका फायदा भारत को मिला है।
2: जूनियर प्रोग्राम से युवाओं की फौज का तैयार होना
2012 में NRAI ने युवा टैलैंट को बढ़ावा देने के लिए जूनियर प्रोग्राम शुरू किया और बजट का 50% पैसा इस पर खर्च करना शुरू किया। इस प्रोग्राम के तहत जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में टॉप पर रहने वाले शूटर्स के लिए पूर्व इंटरनेशनल शूटर्स की निगरानी में कैंप लगाए जाने लगे। इससे टोक्यो ओलिंपिक-2020 के लिए भारत शूटिंग में सबसे ज्यादा 15 कोटा हासिल कर सका और चीन (25) के बाद सबसे ज्यादा कोटा हासिल करने वाला देश बना। इससे पहले 2012 के लंदन ओलिंपिक में 11 भारतीय निशानेबाजों ने हिस्सा लिया था, जबकि रियो ओलिंपिक 2016 में 12 भारतीय निशानेबाज उतरे थे।
3: नेशनल एसोसिएशन का एकेडमी कल्चर को बढ़ावा देना
नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने स्टेट के साथ मिलकर इंटरनेशनल और छोटे शहरों की एकेडमी को बढ़ावा दिया। इससे युवा शूटर्स की फौज तैयार हुई। पिछले कुछ साल में मध्यप्रदेश, चंडीगढ़, केरल जैसे राज्ये के अलावा पुणे जैसे शहरों में शूटिंग अकादमी खुलीं। साथ ही छोटे-छोटे शहरों में शूटिंग रेंज बनने लगीं। इस वजह से छोटे शहरों से भी शूटर निकलने लगे। स्टार शूटर मनु भाकर, सौरभ चौधरी इसके उदाहरण हैं।
4: अभिनव बिंद्रा का ओलिंपिक गोल्ड
अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में शूटिंग का पहला गोल्ड जीता। यह किसी इंडिविजुअल इवेंट में भारत का पहला गोल्ड भी था। बिंद्रा के गोल्ड जीतने के बाद पूरे देश में शूटिंग को एक नई पहचान मिली। उसके बाद छोटे शहरों के स्कूल में 10 मीटर के रेंज तैयार हुईं।
अभिनव के ओलिंपिक गोल्ड के बाद मीडिल-अपर क्लास फैमली में बच्चों का शूटिंग एकेडमी में भेजना स्टेट्स सिंबल मानने लगे। इससे कई छोटे शहरों में लोगों में अपने बच्चों को शूटिंग सिखाने की ललक बढ़ गई। मनु भारत, सौरभ चौधरी ने अपने-अपने स्कूलों से ही शूटिंग की शुरुआत की।
5: खेलो इंडिया यूथ गेम्स का फायदा मिला
केंद्रीय खेल मंत्रालय ने SGFI के साथ मिलकर 2017 में खेलो इंडिया स्कूल गेम्स शुरू किया, बाद में इसका नाम बदलकर खेलो इंडिया यूथ गेम्स कर दिया गया। यूथ गेम्स से शूटिंग को बढ़ावा मिला। इसके तहत अन्य खेलों से सहित शूटिंग के युवा टैलेंट को सर्च कर उनके लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया और फॉरेन एक्सपोजर शुरू की गई।
