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अचिंता शेउली का संघर्ष: पिता की मौत के बाद खाने के पड़ गए लाले, 12 साल की उम्र में किया सिलाई-कढ़ाई का काम

sports_master by sports_master
August 1, 2022
in एथलेटिक्स
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भारतीय भारोत्तोलक अचिंता शेउली ने रविवार देर रात बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेल 2022 में वेटलिफ्टिंग के 73 किलोग्राम भार वर्ग में 313 किलोग्राम वजन उठाकर स्वर्ण पदक हासिल किया। अचिंता शेउली ने स्नैच में 143 किग्रा वजन उठाया और क्लीन एंड जर्क में 170 किलोग्राम वजन उठाकर इतिहास रचा। स्वर्ण पदक हासिल करने के बाद अचिंता बोले, ‘मैं बहुत खुश हूं। कई वर्षों के संघर्षों के बाद मैंने ये मेडल जीता है। मेरे भाई, मां, मेरे कोच, और सेना के बलिदान से मुझे यह पदक मिला है, यह मेरी जिंदगी की पहली बड़ी प्रतियोगिता है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मैं इन सबका आभारी हूं। मैं इसे अपने स्वर्गीय पिता, अपनी मां, भाई और मेरे कोच को समर्पित करना चाहूंगा।’

हालांकि, कॉमनवेल्थ गेम्स में पोडियम पर तिरंगा लहराने वाले 20 साल के इस खिलाड़ी का सफर संघर्षों भरा रहा है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के दुएलपुर में 24 नवंबर 2001 को जन्में अचिंता शिउली का बचपन बेहद संघर्ष में गुजरा। पिता साइकिल रिक्शा चलते थे। अचिंता जब 8वीं कक्षा में थे, तभी उनके पिता का निधन (साल 2013 में) हो गया।यहीं नहीं, उसी दौरान उनके पोल्ट्री फॉर्म पर जंगली लोमड़ी ने हमला कर दिया। परिवार को खाने तक के लाले पड़ गए। इस कारण घर खर्च के लिए परिवार में सबको काम करना पड़ा। मां ने कपड़े सिलना शुरू कर दिए। अचिंता को भी साड़ियों में जरी और कढ़ाई का काम करना पड़ा।

अचिंता ने दस वर्ष की छोटी उम्र से ही वेटलिफ्टिंग की तैयारी शुरू कर दी थी। इसका आगाज बड़े भाई आलोक के साथ जिम में समय बिताने के साथ हुआ। अचिंता जिम में बैठक (दंड-बैठक) और डॉन (खास तरह का पुशअप) लगाया करते थे। खास यह है कि अचिंता ने वेटलिफ्टिंग और सिलाई-कढ़ाई दोनों के गुर आलोक से सीखे।

    देनी पड़ी अपने सपनों की कुर्बानी

आलोक भी वेटलिफटर बनना चाहते थे। साल 2013 में पिता के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी के कारण आलोक को अपने सपनों की कुर्बानी देनी पड़ी। इन सब कठिनाइयों के बीच अचिंता ने अपने सपनों को जीना जारी रखा।अचिंता ने न सिर्फ अपने बल्कि, बड़े भाई के सपनों को भी पूरा करने की ठानी। आलोक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हम उसकी ज्यादा मदद नही कर पाते थे। जब वह नेशनल के लिए गया तो हमने उसे 500 रुपए दिए थे। वह बेहद खुश था। जब वह पुणे में था तो अपनी ट्रेनिंग का खर्चा उठाने के लिए किसी लोडिंग कंपनी में काम करता था।’

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Author: sports_master

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