पेरिस ओलिंपिक में पाकिस्तान के अरशद नदीम ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रच दिया है। अरशद का यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। उन्हें गरीबी से जूझना पड़ा है।पाकिस्तानी मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक अरशद के पिता मजदूर हैं। टेलेंट देख गांव लोगों ने अरशद की ट्रेनिंग के लिए चंदा इकट्ठा किया। पेरिस ओलिंपिक में अरशद की सीधी टक्कर भारत के नीरज चोपड़ा से थी। नीरज सिल्वर लेकर आए हैं।
इस ओलिंपिक में नदीम ने इतिहास रचा है। उन्होंने 92.97 मीटर दूर भाला फेंका। इससे पहले नॉर्ने के एथलीट थोरकिल्डसेन एंड्रियास ने 2008 में बीजिंग ओलिंपिक में 90.57 मीटर का रिकॉर्ड बनाया था।
अब नदीम ने इस रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रच दिया। ये पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार रहा जब ओलिंपिक में किसी एथलीट ने व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता।
किसी एथलीट ने व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता।

ट्रेनिंग के लिए लोगों ने पैसे इकट्ठे किए
अरशद नदीम का जन्म पाकिस्तान के पंजाब के खानेवाल गांव में 1997 में हुआ था। उनके पिता मजदूरी करते हैं। ऐसे में 7 बच्चों के बड़े परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
अरशद के पिता मुहम्मद अशरफ ने मीडिया से बातचीत में बताया कि लोगों को इसका अंदाजा भी नहीं कि अरशद यहां तक कैसे पहुंचा। लोगों ने नदीम की ट्रेनिंग के लिए पैसे इकट्ठे किए। समुदाय का यह सहयोग नदीम के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि शुरुआती दिनों में उसके पास यात्रा और दूसरे शहरों में ट्रेनिंग के लिए जरूरी पैसे नहीं थे।
उन्होंने ये भी बताया कि आर्थिक तंगी के चलते अरशद को एक पुराने भाले से प्रैक्टिस करनी पड़ी। ये भाला खराब भी हो चुका था और उन्हें कई साल से इंटरनेशनल लेवल का नया भाला नहीं खरीद सके। डैमेज हो चुके भाले से ही अभ्यास करते रहे।
अरशद के बड़े भाई शाहिद अजीम के अनुसार वे साल में केवल एक बार ईद-उल-अजहा के दौरान ही मीट खरीद पाते थे। अरशद के पिता मुहम्मद अशरफ ने कहा था कि मैं तो मेहनत मजदूरी करता हूं। मुझे अल्लाह दे रहा है। लेकिन मुल्क ने मुझे कुछ नहीं दिया है। जो अरशद का हक बनता है, वही दे दे।

अरशद नदीम का ऐसा रहा करियर
साल 2015 में नदीम ने भाला फेंक इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया था और बेहद ही कम समय में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। साल 2016 में उन्होंने भारत में साउथ एशियन गेम्स में 78.33 मीटर के राष्ट्रीय रिकॉर्ड थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता। इसके बाद नदीम ने 2019 में दोहा में हुई वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया।
अरशद नदीम ने 2020 टोक्यो ओलिंपिक में 86.62 मीटर दूर भाला फेंककर पांचवां स्थान हासिल किया था। इससे पहले नदीम का करियर बेस्ट थ्रो 90.18 मीटर था। वह 90 मीटर का आंकड़ा पार करने वाले पहले एशियाई खिलाड़ी बने थे।

ओलिंपिक में क्वालिफाई होने पर अरशद नदीम ने बताई थी अपनी कहानी…
मैं छोटे से गांव से हूं
एक इंटरव्यू में अरशद नदीम कह रहे हैं कि मैंने पाकिस्तान के लिए मैंने टोक्यो ओलिंपिक क्वालीफाई किया है। ये मेरी लिए बड़ी फख्र की बात है कि मैंने इतनी बड़ी अचीवमेंट हासिल की है। मैं एक छोटे से गांव से हूं। उधर से ही मैंने ज्वेलिन स्टार्ट किया। मैंने 2016 में 78.1 मीटर का थ्रो किया था। इसके बाद मैंने 86 मीटर का थ्रो किया। मैंने काफी अच्छी मेहनत की है। मेरे एफर्ट ठीक लग रहे है। इज्जत सभी लोग करते है।
जर्मनी में होता तो वर्ल्ड चैंपियन होता
लोग लिविंग स्टाइल और जगह को जरूर देखते है। मैं गांव में ही रहता हूं। इसलिए मेरी देश की सरकार से दरखास्त है कि इस ओर देखें। आज मैं जर्मनी या अन्य किसी दूसरे देश में होता, तो मैं वर्ल्ड चैंपियन होता। पाकिस्तान की मैं इज्जत करता हूं। मैं बस गुजारा कर रहा हूं। मैंने बहुत खिलाड़ी देखे, जो इसी तरह की हालातों की वजह खेल छोड़ चुके है। अभी वे ड्यूटी कर रहे है। वो हमेशा मुझे कहते है कि आप इतने बड़े स्टार हो, आपको कुछ नहीं मिला तो हमें ही क्या मिलेगा।
कोच ने कहा था- 80 से 90 मीटर तक मेडल तय
वहीं उनके कोच ने भी कहा कि अरशद ने ओलिंपिक क्वालीफाई कर के बहुत बड़ी अचीवमेंट हासिल की। एक कोच होने के नाते मैं इतना जरूर जानता हूं कि मैंने बस अरशद की थ्रो को बेस्ट करवाना है। पहले से ज्यादा करवाना है। 88, 89 और 90 मीटर ऐसी दूरी है, जिसके अंदर जेवलनिंग फेंकने पर तीनों मेडल आते है। अभी तक अरशद जितना कर रहा है, शायद उतने में भी उसका गोल आ जाए।
नदीम ने पाकिस्तान को दिलाया तीसरा ओलिंपिक मेडल
नदीम ने गुरुवार को पाकिस्तान के लिए पहला स्वर्ण पदक हासिल किया। यह देश का तीसरा ओलिंपिक पदक है। इससे पहले 1960 में रोम में कुश्ती में और 1988 में सियोल में मुक्केबाजी में पदक जीता था।
पाकिस्तान ने पेरिस ओलिंपिक में सात एथलीट भेजे थे, लेकिन केवल नदीम ही अपने इवेंट में फाइनल के लिए क्वालिफाई कर पाए। गोल्ड जीतने के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल है।


